मुनक्का… के फायदे

🛕 आयुर्वेद ज्ञानामृत 🛕

मुनक्का…
मुनक्कों से तो हम सब परिचित हैं| इसकी प्रकृति गर्म होती है| इसका प्रयोग करने से प्यास शांत हो जाती है व यह गर्मी और पित्त को ठीक करता है| यह पेट और फेफड़ों के रोगों में भी बहुत लाभकारी है|

आज हम जानेंगे मुनक्कों से विभिन्न रोगों का उपचार
(1). 10-12 मुनक्के धोकर रात को पानी में भिगो दें| सुबह को इनके बीज निकालकर खूब चबा चबाकर खाएं, तीन हफ़्तों तक यह प्रयोग करने से खून साफ़ होता है तथा नकसीर में भी लाभ होता है|

(2). 5 मुनक्के लेकर उसके बीज निकल लें, अब इन्हें तवे पर भून लें तथा उसमें कालीमिर्च का चूर्ण मिला लें| इन्हें कुछ देर चूस कर चबा लें, खांसी में लाभ होगा|

(3). बच्चे यदि बिस्तर में पेशाब करते हों तो उन्हें 2 मुनक्के बीज निकालकर व उसमें एक एक काली मिर्च डालकर रात को सोने से पहले खिला दें, यह प्रयोग लगातार दो हफ़्तों तक करें, लाभ होगा|

(4). पुराने बुखार के बाद जब भूख लगनी बंद हो जाए तब 10 -12 मुनक्के भून कर सेंधा नमक व कालीमिर्च मिलाकर खाने से भूख बढ़ती है|

(5). यदि किसी को कब्ज़ की समस्या है तो उसके लिए शाम के समय 10 मुनक्कों को साफ़ धोकर एक गिलास दूध में उबाल लें फिर रात को सोते समय इसके बीज निकल दें और मुनक्के खा लें तथा ऊपर से गर्म दूध पी लें, इस प्रयोग को नियमित करने से लाभ स्वयं महसूस करें|
इस प्रयोग से यदि किसी को दस्त होने लगें तो मुनक्के लेना बंद कर दें|

(6). मुनक्के के सेवन से कमजोरी मिट जाती है और शरीर पुष्ट हो जाता है |

(7). मुनक्के में लौह तत्व [Iron] की मात्रा अधिक होने के कारण यह [Heamoglobin] खून के लाल कण को बढ़ाता है अतः रंग को है।

(8). 4-5 मुनक्के पानी में भिगोकर खाने से चक्कर आने बंद हो जाते हैं।

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📜🌹 पूज्य बापूजी का ✍️संदेश

✍️ सब लोग 11 ग्राम त्रिफला रसायन खाओ l इससे सारा विष निकलेगा और कोरोना का प्रभाव कम होगा।

जिन्होंने वैक्सीन ली है, वे भी रसायन खाओ l उसका प्रभाव क्षीण हो जाएगा।

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🌀 त्रिफला रसायन सेवन के लाभ👇

🔆 पुरानी खांसी, दमा, धातु की दुर्बलता, पुराना बुखार, एसिडिटी, कब्जी, बवासीर, पेट के समस्त विकार और प्रदर रोग मासिक धर्म की तकलीफ जड़ से दूर हो जाती हैं l

त्रिफला का एक महीने तक उपयोग करने से स्वास्थ्य लाभ होगा l 3 महीने तक यह प्रयोग करने से आप यौवन की खबरें देंगे l नई कोशिकाएं बनेगी l

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🌀 त्रिफला रसायन बनाने की आसान विधि

🔸 हरड़, बहेड़ा,आंवला के चूर्ण को त्रिफला बोलते हैं l

🔸 जितना त्रिफला का चूर्ण उतना ⚫ काले तिल का तेल (या गाय का शुद्ध देसी घी) और उतना ही 🍯शहद मिला दिया l बन गया त्रिफला रसायन l

💁🏻‍♂️ 10 ग्राम सुबह और 10 ग्राम शाम को खाएं l ( सूर्यास्त से पहले खा ले तो अच्छा) गुना पानी पी ले l


🔸जिन दिनों में त्रिफला रसायन ले उन दिनों में ठास ठास कर नहीं खाएं l

🔸 🌶️तीखी और तली चीजों से परहेज करें तो अच्छा है l

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💁🏻‍♂️ इसी तरह के 🎙 सत्संग,🪘 भजन, 🏡 घर में सुख शांति व 🍎स्वास्थ्य आदि के उपाय आदि नित्य प्राप्ति हेतु

( 📍- जो पहले से जुड़े हैं, वे कृपया लिंक ना दबाये🙏)

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घुटनों के दर्द का अनुभूत प्रयोग

🌷 ॐ आज की टिप्स ॐ 🌷 ✅ *घुटनों के दर्द का अनुभूत प्रयोग* *६ ग्राम विजयसार की लकड़ी, २५० ग्राम दूध, ३७५ ग्राम पानी, २ चम्मच मिश्री (या चीनी) डालकर धीमी आँच पर पकायें | जब दूध २५० ग्राम रह जाय, तब छानकर सोने से १ घंटा पहले पिये | इससे घुटनों की हड्डियों का कैल्शियम तर रहता है, जिससे वृद्धावस्था में कैल्शियम की कमी के कारण होनेवाली घुटनों की समस्या से रक्षा होती है | पूरानी चोट का दर्द दूर होता है | इससे टूटी हुई हड्डी शीघ्र जुड़ जाती है | कमर व घुटनों का दर्द भी दूर होता है |*

इसका सेवन करनेवाले की वृद्धावस्था में भी कभी गर्दन व हाथ नहीं कॉपेंगे और हाथ-पैरों व शरीर की हड्डियाँ चोट लगने पर सहज में नहीं टूटेंगी | यह प्रयोग सर्दियों में ही करना चाहिये |

जोड़ो की कड़कड़ाहट दूर हड्डियों बने मजबूत

नीचे दिये प्रयोग को करने से हड्डियाँ मजबूत होती है व जोड़ों की कडकड बंद होती है | यह मधुमेह में भी लाभप्रद है |

विधि – १] विजयसार की लकड़ी का ६ ग्राम बुरादा रात को एक काँच के बर्तन में २५० ग्राम पानी में भिगो दें और प्रात: छानकर पी लें | इसी तरह सुबह का भिगोया हुआ पानी शाम को पियें | यह पानी एक बार में इस्तेमाल करे और हर बार नया बुरादा भिगोयें |

२] पारिजात (हरसिंगार) की ५ से ११ पत्तियाँ १ गिलास पानी में उबालें | आधा पानी शेष रहने पर छानकर प्रातः खाली पेट पियें | कुछ दिन लगातार यह प्रयोग करने से जोड़ों का दर्द, गठिया अथवा अन्य कारणों से शरीर में होनेवाले पीड़ा में राहत मिलती है | पथ्यकर आहार लें | 🌷 *ऋषि प्रसाद – अक्टूबर 2014 से*

ये हे संतान प्राप्ति के कुछ आसन से सरल उपाय

🛕 ज्योतिष ज्ञानामृत 🛕

आज विज्ञान बहुत तरक्की कर चुका है. इसकी वजह से आजकल संतान प्राप्ति के बहुत से तरीके उपलब्ध हो चुके है. इन सब से परे आप बच्चा गोद भी ले सकते है. लेकिन हर विवाहित जोड़ा चाहता है कि उसका अपना बच्चा होना चहिये. वैसे भी गोद लिए बच्चे को वो प्यार और ख़ुशी नहीं दे पाएंगे. जो वो अपने खुद के बच्चे को दे सकता है. हर कोई यही चाहता है कि उनका अपना बच्चा हो तो वो ही सबसे ठीक रहेगा.

आजकल संतान प्राप्ति के लिए लोग क्या-क्या जतन करते हे पर कुछ उपाय पूरी निष्ठा और मन से किये जाए तो अवश्य ही लाभ होता हे |

ये हे संतान प्राप्ति के कुछ आसन से सरल उपाय

1.मंत्रसिद्ध चैतन्य पीली कौड़ी को शुभ मुहूर्त में विधिपूर्वक बंध्या स्त्री की कमर में बाँधने से उस निःसंतान

स्त्री की गोद शीघ्र ही भर जाती है।

  1. बरगद के पत्ते पर कुमकुम द्वारा स्वास्तिक का निर्माण करके उस पर चावल एवं एक सुपारी रखकर किसी देवी मंदिर में चढ़ा दें। इससे भी संतान सुख की प्राप्ति यथाशीघ्र होती है।
  2. घर से बाहर निकलते समय यदि काली गाय आपके सामने आ जाए तो उसके सिर पर हाथ अवश्य फेरें। इससे संतान सुख का लाभ प्राप्त होता है।
  3. भिखरियो को गुड दान करने से भी संतान सुख प्राप्त होता है।
  4. विवाहित स्त्रियाँ नियमित रूप से पीपल की परिक्रमा करने और दीपक जलाने से उन्हें संतान अवश्य प्राप्त होती है।
  5. श्रवण नक्षत्र में प्राप्त किये गए काले एरंड की जड़ को विदिपूर्वक कमर में धारण करने से स्त्री को संतान सुख अवश्य मिलता है।
  6. रविवार के दिन यदि विधिपूर्वक सुगन्धरा की जड़ लाकर गाय के दूध के साथ पीसकर की स्त्री खावें तो उसे अवश्य ही संतान सुख मिलता है।
  7. संतान सुख प्राप्ति का एक उपाय यह भी है की गेंहू के आटे की गोलियां बनाकर उसमे चने की दाल एवं थोड़ी सी हल्दी मिलाकर गाय को गुरुवार के दिन खिलाये।
  8. चावलों की धोबन मे नींबू की जड़ को बारीक पीसकर स्त्री को पिलाने के उपरान्त यदि एक घंटे के भीतर स्त्री के साथ उसके पति द्वारा सहवास-क्रिया की जाए तो वो स्त्री निश्चित रूप से कन्या को ही जन्म देती है यह प्रयोग तब किया जाना चाहिए जब कन्या की चाहना बहुत अधिक हो

10.. यदि संतानहीन स्त्री ऋतुधर्म से पूर्व ही रेचक औषधियों (दस्तावर दवाओं) के द्वारा अपने उदार की शुद्धि कर लेने के पश्चात गूलर के बन्दा को श्रद्धापूर्वक लाकर बकरी के दूध के साथ पीए और मासिक धर्म की शुद्धि के उपरान्त सेवन करे तो पुत्र रतन की ही प्राप्ति होगी।

  1. पुष्य नक्षत्र में असगंध की जड़ को उखाड़कर गाय के दूध के साथ पीसकर पीने और दूध का ही आहार ऋतुकाल के उपरांत शुद्ध होने पर पीते रहने से उस स्त्री की पुत्र-प्राप्ति की अभिलाषा अवश्य ही पूरी हो जाती है .
  2. पुत्र की अभिलाषा रखने वाली स्त्री को चाहिए की वा ऋतु-स्नान से एक दिन पूर्व शिवलिंगी की बेल की जड़ मे तांबे का एक सिक्का ओर एक साबुत सुपारी रखकर निमंत्रण दे ओर दूसरे दिन सूर्योदय से पूर्व ही वहाँ जाकर हाथ जोड़कर प्रार्थना करे – हे विश्ववैद्या ! इस पुतरहीन की चिकित्सा आप स्वयम् ही करें! पुत्र विहीन इसकी कुटिया की संतान के मुखमंडल की आभा से आप ही दीप्त करें! ऐसा कहकर शिवलिंग की बेल की जड़ मे अपने आँचल सहित दोनों हाथों को फैलाकर घुटने के बल बैठ जाएँ ओर सिर को बेल की जड़ से स्पर्श कराकर प्रणाम करें! तत्पश्चात शिवलिंगी के पाँच पके हुए लाल फल तोड़कर अपने आँचल मे लपेट कर घर आ जाएँ . उसके बाद काली गाय के थोड़े से दूध मे शिवलिंगी के सभी दाने पीस-घोलकर इसी के दूध के साथ पी जावें तो पुत्र प्राप्ति होगी .
  3. रविवार को पुष्य नक्षत्र में आक (मदार ) की जड़ बंध्या स्त्री की कमर में बाँध दे इससे गर्भधारण करके वह संतान को जन्म अवश्य ही देगी।
  4. पति-पत्नी दोनो अथवा दोनो में से की भी आस्था और श्रद्धाभाव से भगवान श्रीकृष्ण का एक बालरूपी चित्र अपने कक्ष में लगाकर प्रतिदिन 108 बार निम्न मन्त्र का जप पुरे एक वर्ष तक करें।

उसकी मनोकामना अवश्य ही पूर्ण हो जायेगी।

मन्त्र यह है –

देवकी सूत गोविन्द वासुदेव जगत्पते। देहि में तनयं कृष्ण त्वामह शरणंगता।।

नोट – शिशु के जन्म के उपरान्त 21 बच्चों को भोजन कराकर यथाशक्ति दक्षिणा अवश्य देनी चाहिए।

  1. गुरुवार या रविवार को पुष्य नक्षत्र में श्वेत पुष्प वाली कटेरी की जड़ उखाड़ लाएं। मासिक-धर्म से निवृत होकर,ऋतू-स्नान कर लेने पर चौथे या पांचवें दिन कटेरी की जड़ गाय के दूध में (दूध बछड़े वाली गाय का हो) पीसकर पुत्र की अभिलषिणी उस स्त्री को पिला दें जिसके पहले से कोई संतान न हो अर्थात विवाहोपरांत संतान का मुह भी जिसने न देखा हो। जड़ी-सेवन के ठीक बाद स्त्री पति-समागम करे (इससे पहले नहीं) तो प्रथम संतान के रूप में पुत्र को ही जन्म देगी।

नोट – कटेरी एक काँटेदार झाड़ी जाती का पौधा होता है, जिस पर श्वेत डब्ल्यू पीत वार्णीय पुष्प लगते हैं|

इस प्रयोग के लिए श्वेत पुष्प की कटेरी की जड़ ही प्रयुक्त होती है | उसे ही शुभ दिन, मुहूर्त अथवा शुभ पर्व या पुष्य नक्षत्र मे आमंत्रित करके लानी चाहिए |

  1. यदि किसी रजस्वला स्त्री को स्वप्न में नागदेवता के दर्शन हो जाएँ तो स्वयं को कृतार्थ समझना चाहिए | यह इस बात का संकेत है की उसके द्वारा की गई क्रिया सफल हुई है| उसे अवश्य तथा शीघ्र ही सुन्दर, यशस्वी और दीर्घायु संतान प्राप्त होगी |
  2. यदि किसी के संतान नहीं हो रही हो तो उसके लिए बताया गया है की जब किसी व्यक्ति की मृत्यु हो गई हो और अर्थी पर भान्धकार उसे शमशान घाट ले जा रहा हो और वो अर्थी जब किसी चौराहे पर पहुंचे तो उस समय जिस स्त्री के बच्चा नहीं हो रहा है वो स्नान कर नए पीले व्वस्त्र पहनकर पहले से ही उस चौराहे पर कड़ी रहे और जब अर्थी चौराहे पर पहुंचे तो वह स्त्री तुरंत पश्चिम से पूरब की और उस अर्थी के नीचे से निकल जाए | यह ध्यान करते हुए कहे की तुझे मेरे पुत्र के रूप में जन्म लेना है|

:-यह उपाय बहुत ही कठिन हे जो इस उपाय को कर पाता हे उसे संतान सुख अवश्य ही प्राप्त होता हे |

  1. जब पुष्य नक्षत्र एवं रविवार का योग हो, अर्थात रवि पुष्य वाले दिन विधि पूर्वक अश्वगंधा की जड़ लाकर उसे छाया में सुखाकर, पीस और छानकर चूर्ण कर लें | नित्य सवा तोला चूर्ण भैंस के दूध के साथ सेवन करें| इसके साथ ही निम्न लिखित मन्त्र का एक माला जप भी अवश्य करें |

ॐ नमः शकी रुपाय मम गृह पुत्रं कुरु कुरु स्वः |

  1. पुरुष (पति) अश्विनी नक्षत्र से एक दिन पहले बेल के वृक्ष को आमंत्रित कर आये और दूसरे दिन उस वृक्ष का पत्ता लाकर एक रणवाली गाय के दूध में पीसकर स्त्री (पत्नी) को पिलायें और उसके साथ सहवास-क्रिया करे तो एक बार में ही स्त्री के गर्भ ठहर जाता है |
  2. श्रवण नक्षत्र में काले अरण्ड की जड़ को प्राप्त करके कमर में धारण करने वाली स्त्री को संतान-सुख की प्राप्ति अवश्य होती है |
  3. स्वस्थ व निरोगी होने पर भी संतान-सुख से वंचित स्त्री (जिसके पति में कोई कमी न हो)

श्वेत लक्ष्मणा-बूटी की इक्कीस की संख्या में गोली बनाकर रखे और एकेक गोली प्रतिदिन गाय के दूध के साथ सेवन करें तो उसे संतान का लाभ अवश्य होगा |

  1. यदि कोई संतानहीन स्त्री, दूसरी किसी स्त्री की प्रथम संतान (लड़का) की नाल को प्राप्त करके और सुखाकर बारीक पीस लें और पुराने गुड के साथ सेवन करे अथवा शुद्ध सोने के ताबीज में भरवाकर बायीं भुजा में धारण कर लें| इस क्रिया से सोभाग्यवती अवश्य होती हे |

नवरात्र में कन्या पूजन !!!!!

🛕 विविध ज्ञानामृत 🛕

नवरात्र में कन्या पूजन !!!!!

नवरात्र के दौरान कन्या पूजन का विशेष महत्व है। नौ कन्याओं को नौ देवियों के रूप में पूजन के बाद ही भक्त व्रत पूरा करते हैं। भक्त अपने सामर्थ्य के मुताबिक भोग लगाकर दक्षिणा देते हैं। इससे माता प्रसन्न होती हैं।

नवरात्र की सप्‍तमी से कन्‍या पूजन शुरू हो जाता है। सप्तमी, अष्टमी और नवमी के दिन इन कन्याओं को नौ देवी का रूप मानकर पूजा जाता है। कन्याओं के पैरों को धोया जाता है और उन्हें आदर-सत्कार के साथ भोजन कराया जाता है। ऐसा करने वाले भक्तों को माता सुख-समृद्धि का वरदान देती है।

नवरात्र के दौरान कन्या पूजन का विशेष महत्व है। नौ कन्याओं को नौ देवियों के रूप में पूजन के बाद ही भक्त व्रत पूरा करते हैं। भक्त अपने सामर्थ्य के मुताबिक भोग लगाकर दक्षिणा देते हैं। इससे माता प्रसन्न होती हैं।

इस दिन जरूर करें कन्या पूजन
सप्‍तमी से ही कन्‍या पूजन का महत्व है। लेकिन, जो भकग्त पूरे नौ दिन का व्रत करते हैं वे तिथियों के मुताबिक नवमी और दशमी को कन्‍या पूजन करने के बाद ही प्रसाद ग्रहण कर व्रत खत्म करते हैं। शास्‍त्रों में भी बताया गया है कि कन्‍या पूजन के लिए दुर्गाष्टमी के दिन को सबसे अहम और शुभ माना गया है।

ऐसे करें कन्या पूजन??????

  1. कन्या पूजन के लिए कन्‍याओं को एक दिन पहले सम्मान के साथ आमंत्रित करें।
  2. खासकर कन्या पूजन के दिवस ही कन्याओं को यहां-वहां से एकत्र करके लाना उचित नहीं होता है।
  3. गृह प्रवेश पर कन्याओं का पूरे परिवार के साथ पुष्प वर्षा से स्वागत करना चाहिए। नव दुर्गा के सभी नौ नामों के जयकारे लगाना चाहिए।
  4. कन्याओं को आरामदायक और स्वच्छ स्थान पर बैठाकर सभी के पैरों को स्वच्छ पानी या दूध से भरे थाल में पैर रखवाकर अपने हाथों से उनके पैर धोना चाहिए। पैर छूकर आशीष लेना चाहिए और कन्याओं के पैर धुलाने वाले जल या दूध को अपने मस्तिष्क पर लगाना चाहिए।
  5. कन्याओं को स्वच्छ और कोमल आसन पर बैठाकर पैर छूकर आशीर्वाद लेना चाहिए।
  6. उसके बाद कन्याओं को माथे पर अक्षत, फूल और कुमकुम लगाना चाहिए।
  7. इसके बाद मां भगवती का ध्यान करने के बाद इन देवी स्वरूप कन्याओं को इच्छा अनुसार भोजन कराएं।
  8. कन्याओं को अपने हाथों से थाल सजाकर भोजन कराएं और अपने सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा, उपहार दें और दोबारा से पैर छूकर आशीष लें।

दो से 10 साल तक होना चाहिए कन्या!!!!!!!!

1.अपने घर में बुलाई जाने वाली कन्याओं की आयु दो वर्ष से 10 वर्ष के भीतर होना चाहिए।

  1. कम से कम 9 कन्याओं को पूजन के लिए बुलाना चाहिए, जिसमें से एक बालक भी होना अनिवार्य है। जिसे हनुमानजी का रूप माना गया है। जिस प्रकार मां की पूजा भैरव के बिना पूरी नहीं पूर्ण नहीं होती , उसी प्रकार कन्या पूजन भी एक बालक के बगैर पूरा नहीं माना जाता। यदि 9 से ज्यादा कन्या भोज पर आ रही है तो कोई आपत्ति नहीं, उनका स्वागत करना चाहिए।

हर उम्र की कन्या का है अलग रूप!!!!!!

  1. नवरात्र के दौरान सभी दिन एक कन्या का पूजन होता है, जबकि अष्टमी और नवमी पर नौ कन्याओं का पूजन किया जाता है।
  2. दो वर्ष की कन्या का पूजन करने से घर में दुख और दरिद्रता दूर हो जाती है।

3.तीन वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति का रूप मानी गई हैं। त्रिमूर्ति के पूजन से घर में धन-धान्‍य की भरमार रहती है, वहीं परिवार में सुख और समृद्धि जरूर रहती है।

4.चार साल की कन्या को कल्याणी माना गया है। इनकी पूजा से परिवार का कल्याण होता है, वहीं पांच वर्ष की कन्या रोहिणी होती हैं। रोहिणी का पूजन करने से व्यक्ति रोगमुक्त रहता है।

  1. छह साल की कन्या को कालिका रूप माना गया है। कालिका रूप से विजय, विद्या और राजयोग मिलता है। 7 साल की कन्या चंडिका होती है। चंडिका रूप को पूजने से घर में ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।
  2. 8 वर्ष की कन्याएं शाम्‍भवी कहलाती हैं। इनको पूजने से सारे विवाद में विजयी मिलती है। 9साल की की कन्याएं दुर्गा का रूप होती हैं। इनका पूजन करने से शत्रुओं का नाश हो जाता है और असाध्य कार्य भी पूरे हो जाते हैं।
  3. दस साल की कन्या सुभद्रा कहलाती हैं। सुभद्रा अपने भक्तों के सारे मनोरथ पूरा करती हैं।

कन्या का सम्मान सिर्फ 9 दिन नहीं जीवनभर करें!!!!!!!!

नवरात्र के दौरान भारत में कन्याओं को देवी का रूप मानकर पूजा जाता है। लेकिन, कुछ लोग नवरात्र के बाद यह सबकुछ भूल जाते हैं। बहूत-सी जगह कन्याएं शोषण का शिकार होती हैं और उनका अपमान हो रहा है। ऐसे में भारत में बहूत सारे गांवों में कन्या के जन्म पर लोग दुखी हो जाते हैं। जरा सोचिए…।

क्या आप ऐसा करके देवी मां के इन रूपों का अपमान नहीं कर रहे। कन्या और महिलाओं के प्रति हमें सोच बदलनी होगी। देवी तुल्य इन कन्‍याओं और महिलाओं का सम्मान करें। इनका आदर कर आप ईश्वर की पूजा के बराबर पुण्‍य प्राप्त करते हैं। शास्‍त्रों में भी बताया गया है कि जिस घर में औरत का सम्‍मान होता है, वहां खुद ईश्वर वास करते हैं।

कन्या पूजन की यह है प्राचीन परंपरा!!!!!!!

ऐसी मान्यता है कि एक बार माता वैष्णो देवी ने अपने परम भक्त पंडित श्रीधर की भक्ति से प्रसन्न होकर उसकी न सिर्फ लाज बचाई और पूरी सृष्टि को अपने अस्तित्व का प्रमाण भी दे दिया। आज जम्मू-कश्मीर के कटरा कस्बे से 2 किमी की दूरी पर स्थित हंसाली गांव में माता के भक्त श्रीधर रहते थे। वे नि:संतान थे एवं दुखी थे। एक दिन उन्होंने नवरात्र पूजन के लिए कुँवारी कन्याओं को अपने घर बुलवाया। माता वैष्णो कन्या के रूप में उन्हीं के बीच आकर बैठ गई। पूजन के बाद सभी कन्याएं लौट गईं, लेकिन माता नहीं गईं। बालरूप में आई देवी पं. श्रीधर से बोलीं- सबको भंडारे का निमंत्रण दे आओ। श्रीधर ने उस दिव्य कन्या की बात मान ली और आस–पास के गांवों में भंडारे का संदेशा भिजवा दिया। भंडारे में तमाम लोग आए। कई कन्याएं भी आई। इसी के बाद श्रीधर के घर संतान की उत्पत्ति हुई। तब से आज तक कन्या पूजन और कन्या भोजन करा कर लोग माता से आशीर्वाद मांगते हैं।

दुर्गाष्टमी पूजा एवं कन्या पूजन विधान विशेष
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चैत्र शुक्ल पक्ष की अष्टमी व्रत 13 अक्टूबर बुधवार को किया जाएगा। इस दिन मां भवानी प्रकट हुई थी। इस दिन विधि-विधान से पूजा करनी चाहिए. दुर्गा अष्टमी के दिन माता दुर्गा के लिये व्रत किया जाता है।नवरात्रे में नौ रात्रि पूरी होने पर नौ व्रत पूरे होते है।इन दिनों में देवी की पूजा के अलावा दूर्गा पाठ, पुराण पाठ, रामायण, सुखसागर, गीता, दुर्गा सप्तशती की आदि पाठ श्रद्वा सहित करने चाहिए. इस दिन भगवान मत्यस्य जयन्ती भी मध्यान्ह अवधि में मनाई जाती है।

दूर्गा अष्टमी व्रत विधि
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इस व्रत को करने वाले उपवासक को इस दिन प्रात: सुबह उठना चाहिए।और नित्यक्रमों से निवृ्त होने के बाद सारे घर की सफाई कर, घर को शुद्ध करना चाहिए, इसके बाद साधारणत: इस दिन खीर, चूरमा, दाल, हलवा आदि बनाये जाते है. व्रत संकल्प लेने के बाद घर के किसी एकान्त कोने में किसी पवित्र स्थान पर देवी जी का फोटो तथा अपने ईष्ट देव का फोटो लगाया जाता है।

यदि संभव हो तो किसी योग्य ब्राह्मण द्वारा ही पूजन हवन का कार्य संपन्न कराया जाए परिस्तिथि वश ऐसा ना कर सके तो भाव से माँ का पूजन करना चाहिए।

सर्व प्रथम जिस स्थान पर यह पूजन किया जा रहा है, उसके दोनों और सिंदूर घोल कर, त्रिशुल व यम का चित्र बनाया जाता है. ठिक इसके नीचे चौकी बनावें. त्रिशुल व यम के चित्र के साथ ही एक और 52 व दूसरी और 64 लिखें। 52 से अभिप्राय 52 भैरव है, तथा 64 से अभिप्रात 64 योगिनियां है।साथ ही एक ओर सुर्य व दूसरी और चन्द्रमा बनायें।

किसी मिट्टी के बर्तन या जमीन को शुद्ध कर वेदी बनायें. उसमें जौ तथा गेंहूं बोया जाता है. कलश अपने सामर्थ्य के अनुसर सोना, चांदी, तांबा या मिट्टी का होना चाहिए। कलश पर नारियल रखा जाता है। नारियल रखने से पहले नीचे किनारे पर आम आदि के पत्ते भी लगाने चाहिए।

कलश में मोली लपेटकर सतिया बनाना चाहिए. पूर्व दिशा की ओर मुख करके पूजा करनी चाहिए।पूजा करने वाले का मुंह दक्षिण दिशा की ओर नहीं होना चाहिए। दीपक घी से जलाना चाहिए।नवरात्र व्रत का संकल्प हाथ में पानी, चावल, फूल तथा पैसे लेकर किया जाता है। इसके बाद श्री गणेश जी को चार बार चल के छींटे देकर अर्ध्य, आचमन और मोली चढाकर वस्त्र दिये जाते है. रोली से तिलक कर, चावल छोडे जाते है. पुष्प चढायें जाते है, धूप, दीप या अगरबत्ती जलाई जाती है।

भोग बनाने के लिये सबसे पहले चावल छोडे जाते है। इसके बाद नैवेद्ध भोग चढाया जाता है।जमीन पर थोडा पानी छोडकर आचमन करावें, पान-सुपारी एवं लौंग, इलायची भी चढायें।इसी प्रकर देवी जी का पूजन भी करें। और फूल छोडे, और सामर्थ्य के अनुसार नौ, सात, पांच,तीन या एक कन्या को भोजन करायें।इस व्रत में अपनी शक्ति के अनुसार उपवास किया जा सकता है। एक समय दोपहर के बाद अथवा रात को भोजन किया जा सकता है। पूरे नौ दिन तक व्रत न हों, तो सात, पांच या तीन करें, या फिर एक पहला और एक आखिरी भी किया जा सकता है।

व्रत की अवधि में धरती पर शुद्ध विछावन करके सोवें, शुद्धता से रहें, वैवाहिक जीवन में संयम का पालन करें, क्षमा, दया, उदारता और साहस बनाये रखें. साथ ही लोभ, मोह का त्याग करें. सायंकाल में दीपक जलाकर रखना चाहिए। नवरात्र व्रत कर कथा का पाठ अवश्य करना चाहिए।

देवी जी को वस्त्र, सामान इत्यादि चढाने चाहिए जिसमें चूडी, आभूषण, ओढना या घाघरा, धोती, काजल, बिन्दी इत्यादि और जो भी सौभाग्य द्रव्य हो, वे सभी माता को दान करने चाहिए।

देवी की सहस्त्रनाम द्वारा आराधना
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देवी की प्रसन्नता के लिए पंचांग साधन का प्रयोग करना चाहिए। पंचांग साधन में पटल, पद्धति, कवच, सहस्त्रनाम और स्रोत हैं। पटल का शरीर, पद्धति को शिर, कवच को नेत्र, सहस्त्रनाम को मुख तथा स्रोत को जिह्वा कहा जाता है।

इन सब की साधना से साधक देव तुल्य हो जाता है। सहस्त्रनाम में देवी के एक हजार नामों की सूची है। इसमें उनके गुण हैं व कार्य के अनुसार नाम दिए गए हैं। सहस्त्रनाम के पाठ करने का फल भी महत्वपूर्ण है। इन नामों से हवन करने का भी विधान है। इसके अंतर्गत नाम के पश्चात नमः लगाकर स्वाहा लगाया जाता है।

हवन की सामग्री के अनुसार उस फल की प्राप्ति होती है। सर्व कल्याण व कामना पूर्ति हेतु इन नामों से अर्चन करने का प्रयोग अत्यधिक प्रभावशाली है। जिसे सहस्त्रार्चन के नाम से जाना जाता है। सहस्त्रार्चन के लिए देवी की सहस्त्र नामावली जो कि बाजार में आसानी से मिल जाती है कि आवश्यकता पड़ती है।

इस नामावली के एक-एक नाम का उच्चारण करके देवी की प्रतिमा पर, उनके चित्र पर, उनके यंत्र पर या देवी का आह्वान किसी सुपारी पर करके प्रत्येक नाम के उच्चारण के पश्चात नमः बोलकर भी देवी की प्रिय वस्तु चढ़ाना चाहिए। जिस वस्तु से अर्चन करना हो वह शुद्ध, पवित्र, दोष रहित व एक हजार होना चाहिए।

अर्चन में बिल्वपत्र, हल्दी, केसर या कुंकुम से रंग चावल, इलायची, लौंग, काजू, पिस्ता, बादाम, गुलाब के फूल की पंखुड़ी, मोगरे का फूल, चारौली, किसमिस, सिक्का आदि का प्रयोग शुभ व देवी को प्रिय है। यदि अर्चन एक से अधिक व्यक्ति एक साथ करें तो नाम का उच्चारण एक व्यक्ति को तथा अन्य व्यक्तियों को नमः का उच्चारण अवश्य करना चाहिए।

अर्चन की सामग्री प्रत्येक नाम के पश्चात, प्रत्येक व्यक्ति को अर्पित करना चाहिए। अर्चन के पूर्व पुष्प, धूप, दीपक व नैवेद्य लगाना चाहिए। दीपक इस तरह होना चाहिए कि पूरी अर्चन प्रक्रिया तक प्रज्वलित रहे। अर्चनकर्ता को स्नानादि आदि से शुद्ध होकर धुले कपड़े पहनकर मौन रहकर अर्चन करना चाहिए।

इस साधना काल में लाल ऊनी आसन पर बैठना चाहिए तथा पूर्ण होने के पूर्व उसका त्याग किसी भी स्थिति में नहीं करना चाहिए। अर्चन के उपयोग में प्रयुक्त सामग्री अर्चन उपरांत किसी साधन, ब्राह्मण, मंदिर में देना चाहिए। कुंकुम से भी अर्चन किए जा सकते हैं। इसमें नमः के पश्चात बहुत थोड़ा कुंकुम देवी पर अनामिका-मध्यमा व अंगूठे का उपयोग करके चुटकी से चढ़ाना चाहिए।

बाद में उस कुंकुम से स्वयं को या मित्र भक्तों को तिलक के लिए प्रसाद के रूप में दे सकते हैं। सहस्त्रार्चन नवरात्र काल में एक बार कम से कम अवश्य करना चाहिए। इस अर्चन में आपकी आराध्य देवी का अर्चन अधिक लाभकारी है। अर्चन प्रयोग बहुत प्रभावशाली, सात्विक व सिद्धिदायक होने से इसे पूर्ण श्रद्धा व विश्वास से करना चाहिए।

कन्यापूजन विधि निर्देश
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नवरात्र पर्व के दौरान कन्या पूजन का बडा महत्व है। नौ कन्याओं को नौ देवियों के प्रतिविंब के रूप में पूजने के बाद ही भक्त का नवरात्र व्रत पूरा होता है। अपने सामर्थ्य के अनुसार उन्हें भोग लगाकर दक्षिणा देने मात्र से ही मां दुर्गा प्रसन्न हो जाती हैं और भक्तों को उनका मनचाहा वरदान देती हैं।

कन्या पूजन के लिए निर्दिष्ट दिन
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कुछ लोग नवमी के दिन भी कन्या पूजन करते हैं लेकिन अष्टमी के दिन कन्या पूजन करना श्रेष्ठ रहता है। कन्याओं की संख्या 9 हो तो अति उत्तम नहीं तो दो कन्याओं से भी काम चल सकता है।

इस वर्ष अष्टमी तिथि को लेकर लोगो के मन मे कई भ्रांतियां है इसके समाधान हेतु दोबारा अष्टमी तिथी का शात्रोक्त निर्णय प्रेषित कर रहे है

“चैत्र शुक्लाष्टमयां भावान्या उत्पत्ति:,
तत्र नावमीयुता अष्टमी ग्राह्या।”

यदि दूसरे दिन अष्टमी नवमीविधा ना मिले, यानी यह वहां त्रिमुहूर्ताल्प हो तो दुर्गाष्टमी पहले दिन होगी। इस वर्ष दुर्गाष्टमी 13 अक्टूबर बुधवार तथा दुर्गानवमी 14 अक्टूबर गुरुवार के दिन मनाई जाएगी अतः अष्टमी के दिन कन्या पूजन करने वाले 13 एवं नवमी के दिन करने वाले 14 अक्टूबर के दिन निसंकोच होकर अपने कर्म कर सकते है मन से किसी भी प्रकार के संशय भय की हटा दें माता केवल अपनी संतानों का कल्याण ही करती है। पूजा पाठ में शुद्धि के साथ भाव को प्रधान माना गया है।

कन्या पूजन विधि
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सबसे पहले कन्याओं के दूध से पैर पूजने चाहिए. पैरों पर अक्षत, फूल और कुंकुम लगाना चाहिए। इसके बाद भगवती का ध्यान करते हुए सबको भोग अर्पित करना चाहिए अर्थात सबको खाने के लिए प्रसाद देना चाहिए। अधिकतर लोग इस दिन प्रसाद के रूप में हलवा-पूरी देते हैं। जब सभी कन्याएं खाना खा लें तो उन्हें दक्षिणा अर्थात उपहार स्वरूप कुछ देना चाहिए फिर सभी के पैर को छूकर आशीर्वाद ले। इसके बाद इन्हें ससम्मान विदा करना चाहिए।

नवरात्र पर्व कितनी हो कन्याओं की उम्र
ऐसा माना जाता है कि दो से दस वर्ष तक की कन्या देवी के शक्ति स्वरूप की प्रतीक होती हैं. कन्याओं की आयु 2 वर्ष से ऊपर तथा 10 वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिए। दो वर्ष की कन्या कुमारी , तीन वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति , चार वर्ष की कन्या कल्याणी , पांच वर्ष की कन्या रोहिणी, छह वर्ष की कन्या कालिका , सात वर्ष की चंडिका , आठ वर्ष की कन्या शांभवी , नौ वर्ष की कन्या दुर्गा तथा दस वर्ष की कन्या सुभद्रा मानी जाती है। इनको नमस्कार करने के मंत्र निम्नलिखित हैं।

  1. कौमाटर्यै नम: 2. त्रिमूर्त्यै नम: 3. कल्याण्यै नम: 4. रोहिर्ण्य नम: 5. कालिकायै नम: 6. चण्डिकार्य नम: 7. शम्भव्यै नम: 8. दुर्गायै नम: 9. सुभद्रायै नम:।
    डॉ0 विजय शंकर मिश्र:

नौ देवियों का रूप और महत्व
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  1. हिंदू धर्म में दो वर्ष की कन्या को कुमारी कहा जाता है. ऐसी मान्यता है कि इसके पूजन से दुख और दरिद्रता समाप्त हो जाती है।
  2. तीन वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति मानी जाती है. त्रिमूर्ति के पूजन से धन-धान्य का आगमन और संपूर्ण परिवार का कल्याण होता है।
  3. चार वर्ष की कन्या कल्याणी के नाम से संबोधित की जाती है. कल्याणी की पूजा से सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
  4. पांच वर्ष की कन्या रोहिणी कही जाती है, रोहिणी के पूजन से व्यक्ति रोग-मुक्त होता है।
  5. छ:वर्ष की कन्या कालिका की अर्चना से विद्या, विजय, राजयोग की प्राप्ति होती है।
  6. सात वर्ष की कन्या चण्डिका के पूजन से ऐश्वर्य मिलता है।
  7. आठ वर्ष की कन्या शाम्भवी की पूजा से वाद-विवाद में विजय होती है।
  8. नौ वर्ष की कन्या को दुर्गा कहा जाता है. किसी कठिन कार्य को सिद्धि करने तथा दुष्ट का दमन करने के उद्देश्य से दुर्गा की पूजा की जाती है।
  9. दस वर्ष की कन्या को सुभद्रा कहते हैं. इनकी पूजा से लोक-परलोक दोनों में सुख प्राप्त होता है।

नवरात्र पर्व पर कन्या पूजन के लिए कन्याओं की 7, 9 या 11 की संख्या मन्नत के मुताबिक पूरी करने में ही पसीना आ जाता है. सीधी सी बात है जब तक समाज कन्या को इस संसार में आने ही नहीं देगा तो फिर पूजन करने के लिये वे कहां से मिलेंगी।

जिस भारतवर्ष में कन्या को देवी के रूप में पूजा जाता है, वहां आज सर्वाधिक अपराध कन्याओं के प्रति ही हो रहे हैं. यूं तो जिस समाज में कन्याओं को संरक्षण, समुचित सम्मान और पुत्रों के बराबर स्थान नहीं हो उसे कन्या पूजन का कोई नैतिक अधिकार नहीं है. लेकिन यह हमारी पुरानी परंपरा है जिसे हम निभा रहे हैं और कुछ लोग शायद ढो रहे हैं. जब तक हम कन्याओं को यथार्थ में महाशक्ति, यानि देवी का प्रसाद नहीं मानेंगे, तब तक कन्या-पूजन नितान्त ढोंग ही रहेगा. सच तो यह है कि शास्त्रों में कन्या-पूजन का विधान समाज में उसकी महत्ता को स्थापित करने के लिये ही बनाया गया है।