आँजणा कलबी ,पटेल ,पाटीदार , चौधरी , कुलबी ,आँजणा पटेल ,आँजणा चौधरी, का इतिहास

इतिहास शब्द एक ऐसा शब्द हे जो इस धरती पर इंसान की उत्पत्ति से लेकर आज तक की हर गति विधि, हर जीव जंतु की उत्तपत्ति ,सब तरह के ज्ञान से सब तरह के बोध से हमें अवगत कराता हे !सर्वप्रथम धरती पर इंसान की उतपत्ति हुई धीरे धीरे वक्त ने करवट बदली और युग थोड़ा आगे बढ़ा , और इंसानो ने ही अपनी सुविधा के लिए सहूलियत के लिए मानव को उनके कार्य के आधार पर उन्हें अलग अलग वर्णो में बाँट दिया गया ! क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र और भ्रामण ,आगे बढ़ते बढ़ते भारत में कई जातिया , कई नख ,कई उपजातिया बन गई और आज जात- पात का एक जंजाल बन गया, हमारे देश में इतनी बड़ी मात्रा में जातियाँ और उपजातिया हे की हर कोई चाह रखता हे की हमारा भी कोई वजूद रहे ,हमारा भी कोई ,कही वजूद हो ,चाहेगा भी क्यों नहीं ,चाहना भी जरूरी हे और लाजमी हे !बिना वजूद के न तो कोई पूछता हे ना कोई जानता हे और बिना पूछे और बिना जाने आज की इस महसशक्कत भरी दुनिया में ज़िंदा रहना तक एक संघर्ष हे ! कई और हजारो कमजोर शाखाओ का कोई वजूद नहीं होता और मजबूत एक शाखा भी अपना वजूद रख सकती हे अपना परिचय मजबूती के नाम पर दे सकती हे स्थिरता और कठोरता के नाम पर दे सकती हे !
एक चार अक्षर के शब्द इतिहास का इतना बड़ा उल्लेख करने का मेरा मकसद यही हे की आखिर हमारा कलबी समाज का क्या हाल हे क्या इतिहास हे आज के समय में हमारी क्या स्तिथि हे हमारा क्या और कहा कहा वजूद हे !
संसार का सबसे बड़ा लोकतान्त्रिक देश सबसे बड़ा दूसरा जनसंख्या वाला देश हजारो जातियों ,,भाषाओ और बोलियो वाला देश , सभ्यता संस्कृति और ऋषि मुनिओ के देश के नाम से जाना जाने वाला वतन और इस भारत देश के नाम से यदि में कलबी समाज की तुलना करू तो शायद कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी ,क्योंकि आज कलबी पटेल समाज की यही विशेषताए हे जो हमारी पहचान बनाती हैं मेहनत मजदूरी ,सेवा, संस्कार,क्षमा , सहनशीलता यही हैँ हमारी विशेषताए !
अपनी समाज के इतिहास पर नजर डालने से पहले यह साफ़ करना बेहद जरुरी हे की आखिर मुझे इतने पुराने इतिहास पर एक दृष्टि डालने की जरुरत ही क्यों पड़ी !
क्योंकि जब जाति के आधार पर हमारे देश की जनसंख्या की जनगणना होने जा रही थी तब काफी जातियों के संघर्ष को मेने देखा ,उनकी लड़ाई को देखा ! हम जो की कई नमो से जाने जाते हे, अलग अलग नमो से जाने जाते हे ,,यह फैसला ही नहीं कर पाये की किस नाम को लेकर आगे चले आज भी यही हाल हैं की हम किस नाम से जाने जाये ! कई नामों से हमारी पहचान हे जैसे आँजणा ,पटेल ,पाटीदार , चौधरी , पीतल , कुलबी ,आँजणा पटेल ,आँजणा चौधरी, पटेल चौधरी ,देसाई आदि आदि ! इनमे से काफी तो पदवियाँ हैं जो की हम अपने नाम के साथ लगते हैं, और अपने आपको गोरवन्तित महसूस करते हैं पर हां कुछ लोग ऐसे भी जरूर मिलेंगे जो अपने नाम के साथ कलबी पटेल लगाने में बिलकुल भी संकोच नहीं करते !पर वो बहुत कम हैं ,एक जो आवाज गुंजनी चाहिए वो नहीं गूंजती !हमारे कई संगठन जो की पटेल शब्द से हैं कई चौधरी शब्द से हैं तो कई आँजना शब्द से हैं !कई पत्रिकाए हैं वो भी कोई पटेल कोई आँजणा पटेल, तो कोई आँजणा ,नाम से हैं इन सब की जगह यदि कलबी आँजणा शब्द का उल्लेख होता तो अपनी एक पहचान बनाने में ,एक नाम एक समाज कहने में कोई परेशानी नहीं होती !अलग अलग नामों से अपनी पहचान देने से हमें अपने आपको उपस्थित करने में बड़ी परेशानी होती हैं! यदि हमारी सामाज चाहे की हमारा एक नाम हो एक समाज का एक नाम हो , एक परिचय हो तो हमें अलग अलग नमो की बजाय एक नाम कलबी आँजणा ही देना आरम्भ कर देना चाहिए ! फिर सब नामो को छोड़कर हम सिर्फ कलबी आँजणा ही कहलाने लग जायेंगे फिर हमें अपने आपको को अपनी पहचान के लिए किसी को कहना या उल्लेख नहीं करना पडेगा की हम कलबी आँजणा हैं श्री राजारामजी वाले, और हमारा नाम कलबी आँजणा होने का उल्लेख कई ग्रंथो में लिखित हैं ! और कई समाजसेवियों द्वारा पत्र पत्रिकाओ में हमारे समाज के इस नाम के इतिहास का उल्लेख किया गया हैं!
हमारे समाज के लोगो में अपने नाम के साथ कलबी आँजणा लगाने में कई तरह की भ्रान्तियां और संकोच हैं ! इस तरह के संकोच को दूर करने के लिए और एक नाम एक समाज की लड़ाई को बरकरार रखते हुए में समस्त समाज बंधुओ के सामने अपने नाम के इतिहास को लेकर कुछ पंक्तिया प्रकट कर रहा हूँ जो कि मैने भी कही न कही समाज के ही इतिहास में पढ़ी हैं जो हमारे समस्त संकोचों को दूर कर देगी…………पुराने समय में कई युगो का अवतरण हुआ कई युगो का आगमन हुआ कई युगो का नाम हुआ उनका राज हुआ ……आज से करीब करीब ढाई तीन हजार वर्ष पूर्व की बात हैं हमारे देश में आर्यो का युग था । उस समय के वैदिक आर्यो के समाज के अपने वर्ण थे और वैदिक आर्यो के चार वर्णो में एक वर्ण था क्षत्रिय वर्ण, उनके क्षत्रिय वर्ण में हमारे पुरखो की गणना की जाती थी। उनके काल में जब युद्ध होते थे आपसी लड़ाईयाँ होती थी तब क्षत्रिय कहलाने वाले हमारे पूर्वज योद्धा बनकर अपनी सेवा देते थे । लेकिन जब शांति का समय होता था ,तब वो लोग अपना पेट पालने के लिए , अपनी रोजी रोटी कमाने के लिए और सभी की सेवा के लिए अन्न उत्त्पन्न करने का कार्य करते थे ,और अन्न उत्तपन्न करना ,हल चलाना ,खेती करने के लिए उनका मुख्य औजार हल था तो उन्हें हली क्षत्रिय के नाम से पुकारा जाने लगा। और वो एक ऐसा वक्त था जब भारत का ईरानी लोगो के साथ संपर्क होना शुरु हो गया था , उनके आपसी संपर्क और भाषा का तालमेल था , ईरानी लोग खेती के औजार हल को कुलबा बोलते थे .और उन्होंने हमारे पुरखो को हली क्षत्रिय की जगह कुलबी क्षत्रिय कहना शुरु कर दिया ! उस समय जैसे जैसे उनकी जनसंख्या बढ़ती गई तो अपनी रोजमर्रा की जिंदगी को जारी रखते हुए अपना पेट पालने के लिए घूमते फिरते गुजरात की और रुख किया और गुजरात की किसी आजन्यु यानी की अजान भूमि पर पहुंच गए और वहा रहकर अपनी आजीविका शुरु की! धीरे धीरे उस अजान भूमि पर उन्होंने अपना सामज्य स्थापित किया और ब्रजपाल को अपना राजा बनाया ! मध्य काल की शुरुआत हो चुकी थी ! जनसंख्या बढ़ने लगी तो वहां से उठ कर कुछ पुरखो ने अजान प्रदेश के उत्तर यानि की राजस्थान की तरफ रुख किया और मारवाड़ क्षेत्र के श्रीमाल भाग पर जो की राजस्थान के जालोर जिला के भीनमाल के आसपास का क्षेत्र माना जाता हे ! वहां पहूँचकर अपना बसेरा डाला और अपनी आजीविका प्रारम्भ की इधर के लोगो ने इन्हे अजान भू भाग से आने के कारण उन्हें अजान कहा !
ऐसा होना भी स्वाभाविक था क्यों की आज भी हम जो गुजरात से आता हे उसे गुजराती और पंजाब से आता हे वो पंजाबी आदि कहते हैं ! तो इस तरह हमारे पूर्वजो के यहाँ तक पहुँचते पहुँचते “अजान कुलबी क्षत्रिय” कहा जाने लगा था, और इसके बजाय की उन्होंने क्षत्रिय कर्मो को पूर्ण रूप से त्याग दिया और हल चलना ही अपना मुख्य कर्म बना लिया उसे ही अपनी आजीविका का साधन बना लिया , धीरे धीरे पुरे राजस्थान ,मध्य प्रदेश और गुजरात तीन राज्यों में फेल गए और बदलती परिस्थितियों के साथ साथ समाज के काम काज में भी कुछ बदलाव आया और इन्होने व्यापार की तरफ भी रुख किया और इस क्षेत्र में भी अपनी अच्छी पहचान बना चुके हैं आज खेती , व्यापार , सरकारी नौकरी , सेवा , हर जगह कलबी पटेल समाज की अच्छी पकड़ हैं आज लगभग पुरे भारत के हर कोने में अपना व्यापार फैलाए हुए हैं, और समय बदलने के साथ साथ कुलबी क्षत्रिय की जगह “आँजणा कुलबी” को ही अपना नाम परिचय रखा कर अपनी पहचान आँजणा कुलबी से ही देने लगे .अतः कुलबी शब्द एक अपभ्रंश शब्द हे तो कुलबी को सिर्फ कलबी ही बोला जाने लगा और “आँजणा कुलबी” की जगह “आँजणा कलबी” ही रह गया .! इस तरह ग्रंथो में लिखित उलेख बताता हे की आज से लगभग ढाई तीन हजार साल पहले हमारे पूर्वजो को “कलबी क्षत्रिय” के नाम से जाना जाने लगा था और करीब करीब १४०० वर्ष पूर्व वो आंजना कुलबी के नाम से अपनी पहचान बना चुके थे ! कही कही कुर्मी और कुलबी शब्द का भी काफी जोड़ तोड़कर उल्लेख हे पर वैसे देखा जाये तो दोनों ही शब्द एक हे और इनका काम और मकसद भी एक ही था और हे , खेती करने वाले ! भारत में लगभग 1488 तरह के कुलबियो के होने का उल्लेख हे जो को हमारी आँजणा कलबी समाज की ही तरह कई तरह की शाखाओ में विभक्त हे उनका भी उल्लेख हे की उनकी भी उत्पत्ति क्षत्रिय वर्ण से हुई मानी जाती हे पर उनकी वर्ण ,,गोत्र ,,नख हमसे और हमारी समाज से काफी भिन्नता रखते हे ! लेकिन हमारी हमारे क्षत्रिय वर्ग को कुल चौदह शाखाओ में यानि की वर्णो में विभाजित किया गया हे जो हे ..१. चौहान २.तंवर ,३.चौड़ा ४. झाला ५. सोलंकी ६.सिसोदिया ७ यादव ८.परिहार ९. कच्छवाह १०.राठौर ११. गोयल १२. जेठवा १३. परमार और १४. मकवाना !और चौदह वर्णो को २५० गोत्र के रूप में विभाजित किया गया हे .जैसे ,, काग , कुकल ,कर्ड, कोदली ,बोका ,तरक,भोड़,धूलिया,दुनिया,मोर,मुजी,रातडा,ओड, वागडा,भूरिया, जुडाल,काला,कोदली,फक बूबी,,,केउरी ,,,,,,, ?
इस तरह हमारे समाज के सम्पूर्ण इतिहास के तोर पर हमारी नार्वो के तोर पर और हमारी गोत्रो के तोर पर ,,,सब को मध्येनजर रखते हुए यह कहा जाना उचित ही होगा की हमारी उत्त्पत्ति वैदिक आर्यो के क्षत्रिय वर्ण से हुई हे !अतः हमें अपना परिचय आँजणा कलबी नाम से देने में कोई अतिश्योक्ती नहीं होनी चाहिए !
हम “”आँजणा कलबी”” हे और हमारा परिचय हमें “”आँजणा कलबी”” नाम से ही देना चाहिए !

जय श्री राजेश्वर भगवान