स्त्रियोँ को नारियल क्योँ नहीं फोड़ना चाहिए

स्त्रियोँ को नारियल क्योँ नहीं फोड़ना चाहिए?
हम सभी जानते हैं पूजन कर्म में नारियल का महत्वपूर्ण स्थान है। किसी भी देवी-देवता की पूजा नारियल के बिना अधूरी ही मानी जाती है। नारियल खाने से शारीरिक दुर्बलता एवं भगवान को नारियल चढ़ाने से धन संबंधी समस्याएं दूर हो जाती हैं। स्त्रियाँ क्योँ नहीं फोड़तीं नारियल !! यह भी एक तथ्य है कि महिलाऐँ नारियल नहीं फोड़तीं। नारियल बीज रूप है,इसलिए इसे उत्पादन (प्रजनन) क्षमता से जोड़ा गया है। स्त्रियों बीज रूप से ही शिशु को जन्म देती है और इसलिए नारी के लिए बीज रूपी नारियल को फोड़ना अशुभ माना गया है। देवी-देवताओं को श्रीफल चढ़ाने के बाद पुरुष ही इसे फोड़ते हैं। नारियल से निकले जल से भगवान की प्रतिमाओं का अभिषेक भी किया जाता है। नारियल को श्रीफल भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है,जब भगवान विष्णु ने पृथ्वी पर अवतार लिया तो वे अपने साथ तीन चीजें- लक्ष्मी, नारियल का वृक्ष तथा कामधेनु लाए। इसलिए नारियल के वृक्ष को कल्पवृक्ष भी कहते है। नारियल में ब्रह्मा,विष्णु और महेश तीनों ही देवताओं का वास माना गया है। श्रीफल भगवान शिव का परम प्रिय फल है। नारियल में बनी तीन आंखों को त्रिनेत्र के रूप में देखा जाता है। सम्मान का सूचक है नारियल !! श्रीफल शुभ, समृद्धि, सम्मान, उन्नति और सौभाग्य का सूचक है। सम्मान करने के लिए कपडोँ के साथ श्रीफल भी दिया जाता है। सामाजिक रीति-रिवाजों में भी नारियल भेंट करने की परंपरा है। जैसे बिदाई के समय तिलक कर नारियल और धनराशि भेंट की जाती है। रक्षाबंधन पर बहनें भाइयों को राखी बांध कर नारियल भेंट करती हैं और रक्षा का वचन लेती हैं। 

 

मासानुसार गर्भिणी परिचर्याहर महीने में गर्भ – शरीर के अवयव व धातुएँ आकर लेती है, अंत: विकासक्रम के अनुसार मासानुमासिक कुछ विशेष आहार लेना चाहिए |पहला महिना :- गर्भधारण का संदेह होते ही गर्भिणी सदा मिश्रीवाला सहज में ठंडा हुआ दूध उचित मात्र में पाचनशक्ति के अनुसार तीन घंटे के अंतराल से ले अथवा सुबह – शाम ले | इसके साथ सुबह १ चम्मच मक्खन में रूचि अनुसार मिश्री व काली मिर्च का चूर्ण मिलाकर ले एवं हरे नारियल की चार चम्मच गिरी के साथ २ चम्मच सौंफ खूब देर तक चबाकर खाए | इससे बालक का शरीर पुष्ट, सुडौल व गौरवर्ण का होगा |दूसरा महिना :- इसमे शतावरी, जीवन्ती, अश्वगंधा, मुलहठी, बला आदि मधुर औषधियों में से एक या अधिक का १ ग्राम चूर्ण २०० मिली दूध में २०० मिली पानी मिलाकर मध्यम आँच पर उबालते हुए पानी का भाग जल जाने पर सेवन करे | सवा महिना होने पर आश्रम द्वारा दी औषध से ३ मास तक पुंसवन कर्म करे |तीसरा महिना :-इस महीने में दूध को ठंडा कर १ चम्मच शुध्द घी व ३ चम्मच शहद [ अर्थात घी व शहद विषम मात्रा में ] मिलकर सुबह – शाम ले | अनार का रस पीने तथा ”ॐ नमो नारायण” का जप करने से उलटी दूर होती है |चौथा महिना :- इसमें प्रतिदिन २० से ४० ग्राम मक्खन को धोकर छाछ का अंश निकालकर मिश्री के साथ या गुनगुने दूध में डालकर अपनी पाचनशक्ति के अनुसार सेवन करे | इस मास में बालक का हृदय सक्रिय होने से वह सुनने – समजने लगता है | बालक की इच्छानुसार माता के मन में आहार – विहार संबंधी विविध इच्छाएँ उत्पन्न होने से उनकी पूर्ति युक्ति से [ अर्थात अहितकर न हो ] करनी चाहिए |पांचवां महिना :- इस महीने से गर्भ में मस्तिष्क का विकास शुरू हो जाने से दूध में १५ से २० ग्राम घी ले या दिन में दाल – रोटी, चावल में ७ – ८ चम्मच घी ले | रात को १ से ७ बादाम [ अपने पाचनानुसार ] भिगो दे, सुबह छिलका निकाल के घोंटकर खाए व ऊपर से दूध पिये |इस महीने के प्रारंभ से ही माँ को बालक के इच्छित धर्मबल, नीतिबल, मनोबल व सुसंस्कारों का अनन्य श्रध्दापूर्वक सतत मनन – चिंतन करना चाहिए | सत्संग व शास्त्र का भी मनन – चिंतन करना चाहिए |छठा व सातवाँ महिना :- इन महीनो में दूसरे महीने की मधुर औषधियों में गोक्षुर चूर्ण का समावेश करे व दूध – घी से ले | आश्रम – निर्मित तुलसी – मूल की माला कमर में धारण करे | इस महीने से सूर्यदेव को जल चढ़ाकर उनकी किरणे पेट पर पड़े ऐसे स्वस्थता से बैठकर उँगलियों पर नारियल तेल लगाकर बाहर से नाभि की ओर हल्के हाथो से मसाज करते हुए गर्भस्थ शिशु को संबोधित करते हुए कहे,” जैसे सूर्यनारायण ऊर्जा, उष्णता, वर्षा देकर जगत का कल्याण करते है, वैसे तू भी ओजस्वी, तेजस्वी व परोपकारी बनना | माँ के स्पर्श से बच्चा आनंदित होता है | बाद में २ मिनट तक निम्न मंत्रो का उच्चारण करते हुए मसाज चालू रखे |ॐ भूर्भुव: स्व: | तत्सवितुर्वरेन्यं भर्गो देवस्य धीमहि | धियो यो न: प्रचोदयात ||                                                                                           रामो राजमणि: सदा विजयते राम रमेश भजे, रामेनाभिदता निशाचरचमू रामाय तस्मै नम: |रामान्नास्ति परायण परतरं रामस्य दसो स्म्यहं, रमे चित्तलय: सदा भवतु में भो राम मामुध्दर ||                                                                          रामरक्षास्तोत्र के उपर्युक्त श्लोक में ‘ र ‘ का पुनरावर्तन होने से बच्चा तोतला नहीं रहता | पिता भी अपने प्रेम भरे स्पर्श के साथ गर्भस्थ शिशु को प्रशिक्षित करे |        सातवें मास में स्तन, छाती व पेट पर त्वचा के खिंचने से खुजली शुरू होने पर ऊँगली से न खुजलाकर देशी गाय के घी की मालिश करनी चाहिए |आठवां व नौवा महिना :- इन महीनो में चावल को ६ गुना दूध व ६ गुना पानी में पकाकर घी डालकर सुबह – शाम खाए अथवा शाम के भोजन में दूध – दलिया में घी डालकर खाए | शाम का भोजन तरल रूप में लेना जरुरी है |                                 गर्भ का आकार बढने पर पेट का आकार व भार बढ़ जाने से कब्ज व गैस की शिकायत हो सकती है | निवारणार्थ निम्न प्रयोग अपनी प्रकृति के अनुसार करे |                                 आठवें महीने के १५ दिन बीत जाने पर २ चम्मच एरण्ड तेल दूध से सुबह १ बार ले, फिर नौवे महीने की शुरुआत में पुन: एक बार ऐसा करे अथवा त्रिफला चूर्ण, इसबगोल इनमे से जो भी चूर्ण प्रकृति के अनुकूल हो उसका सेवन वैद्यकीय सलाह के अनुसार करे | पुराने मल की शुद्धि के लिए अनुभवी वैद्य द्वारा निरुह बस्ति व अनुवासन बस्ति ले चंदनबला लाक्षादी तेल से पीठ , कटी से जंघाओं तक मालिश करे और इसी तेल में कपडे का फाहा भिगोकर रोजाना रात को सोते समय योनि के अन्दर गहराई में रख लिया करे | इससे योनिमार्ग मृदु बनता है और प्रसूति सुलभ हो जाती है |पंचामृत : १ चम्मच ताज़ा दही, ७ चम्मच दूध, २ चम्मच शहद, १ चम्मच घी व १ चम्मच मिश्री को मिला लो | इसमें १ चुटकी केसर भी मिलाना हितावह है | ९ महीने नियमित रूप से यह पंचामृत ले |गुण : यह शारीरिक शक्ति, स्फूर्ति, स्मरणशक्ति व कांति को बढाता है तथा हृदय, मस्तिष्क आदि अवयवों को पोषण देता है | यह तीनो दोषों को संतुलित करता है व गर्भिणी अवस्था में होनेवाली उलटी को कम करता है |              उपवास में सिंघाड़े व राजगरे की खीर का सेवन करे | इस प्रकार प्रत्येक गर्भवती स्त्री को नियमित रूप से उचित आहार – विहार का सेवन करते हुए नवमास चिकित्सा विधिवत लेनी चाहिए ताकि प्रसव के बाद भी उसका शरीर सशक्त, सुडौल व स्वस्थ बना रहे, साथ ही वह स्वस्थ, सुडौल, सुन्दर और हृष्ट – पुष्ट शिशु को जन्म दे सके | यह चिकित्सा लेने पर सिजेरियन डिलीवरी की नौबत नहीं आयेगी | प्रसूति के समय नर्स, डॉक्टर ओपरेशन की बात करे तो मना कर दे | गाय के गोबर का १० से ११ मिली रस [ भगवन्नाम जपकर ] लेने से सिजेरियन डिलीवरी की नौबतनहीं आती | संत श्री आशारामजी बापू के उपदेश का लाभ लेनेवाले कई परिवारों के जीवन में यह लाभ देखा गया है |