सिजेरियन डिलीवरी खतरनाक

सिजेरियन डिलीवरी खतरनाक

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अब वैज्ञानिक भी मान रहे हैं सिजेरियन डिलीवरी खतरनाक
 
      विश्वमानव के सच्चे हितेषी पूज्य संत श्री आशारामजी बापू वर्षों से सत्संग में कहते आ रहे हैं कि ऑपरेशन द्वारा प्रसूति माँ और बच्चा दोनों के लिए हानिकारक है | अत: प्रसूति प्राकृतिक रूप से ही होनी चाहिए | प्रयोगों के पश्यात विज्ञान भी आज इस तथ्य को मानने के लिए बाध्य हो गया है कि प्राकृतिक प्रसूति ही माँ एवं बच्चे के लिए लाभप्रद है | जापानी वैज्ञानिकों द्वारा किये गये शोध से यह सिद्ध हुआ है कि प्रसूति के समय स्त्रावित होनेवाले ९५% योनिगत द्रव्य हितकर जीवाणुओं से युक्त होते है, जो सामान्य प्रसूति में शिशु के शरीर में प्रविष्ट होकर उसकी रोगप्रतिकारक शक्ति और पाचनशक्ति को बढ़ाते है | इससे दमा, एलर्जी, श्वसन-संबंधी रोगों का खीरा काफी कम हो जाता है, जबकि ऑपरेशन से पैदा हुए बच्चे अस्पताल के हानिकारक जीवाणुओं से प्रभावित हो जाते है |
         स्विट्जरलैंड के डॉ. केरोलिन रोदुइत ने २९१७ बच्चों का अध्ययन करके पाया कि उनमें से २४७ बच्चे जो सिजेरियन से जन्मे थे, उनमें से १२% बच्चों को ८ साल की उम्र तक में दमे का रोग हुआ और उपचार कराना पड़ा | इसका कारण यह था कि उनकी रोगप्रतिकारक शक्ति प्राकृतिक रूप से जन्म लेनेवाले बच्चों की अपेक्षा कम होती है, जिससे उनमें दमे का रोग होने की सम्भावना ८०% बढ़ जाती है | प्राक्रतिक प्रसूति में गर्भाशय के संकोचन से शिशु के फेफड़ों और छाती में संचित प्रवाही द्रव्य मुँह के द्वारा बाहर निकल जाता है, जो सिजेरियन में नहीं हो सकता | इससे शिशु के फेफड़ों को भारी हानि होती है, जो आगे चलकर दमे जैसे रोगों का कारण बनती है | ऑपरेशन से पैदा हुये बच्चों में मधुमेह (diabetes) होने की सम्भावना २०% अधिक रहती है | सिजेरियन के बाद अगले गर्भधारण में गर्भस्थ शिशु के मस्तिष्क एवं मेरुरज्जु (spinal cord) में विकृति तथा वजन कम होने का भय रहता है |

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अब वैज्ञानिक भी मान रहे हैं सिजेरियन डिलीवरी खतरनाक
 
      विश्वमानव के सच्चे हितेषी पूज्य संत श्री आशारामजी बापू वर्षों से सत्संग में कहते आ रहे हैं कि ऑपरेशन द्वारा प्रसूति माँ और बच्चा दोनों के लिए हानिकारक है | अत: प्रसूति प्राकृतिक रूप से ही होनी चाहिए | प्रयोगों के पश्यात विज्ञान भी आज इस तथ्य को मानने के लिए बाध्य हो गया है कि प्राकृतिक प्रसूति ही माँ एवं बच्चे के लिए लाभप्रद है | जापानी वैज्ञानिकों द्वारा किये गये शोध से यह सिद्ध हुआ है कि प्रसूति के समय स्त्रावित होनेवाले ९५% योनिगत द्रव्य हितकर जीवाणुओं से युक्त होते है, जो सामान्य प्रसूति में शिशु के शरीर में प्रविष्ट होकर उसकी रोगप्रतिकारक शक्ति और पाचनशक्ति को बढ़ाते है | इससे दमा, एलर्जी, श्वसन-संबंधी रोगों का खीरा काफी कम हो जाता है, जबकि ऑपरेशन से पैदा हुए बच्चे अस्पताल के हानिकारक जीवाणुओं से प्रभावित हो जाते है |
         स्विट्जरलैंड के डॉ. केरोलिन रोदुइत ने २९१७ बच्चों का अध्ययन करके पाया कि उनमें से २४७ बच्चे जो सिजेरियन से जन्मे थे, उनमें से १२% बच्चों को ८ साल की उम्र तक में दमे का रोग हुआ और उपचार कराना पड़ा | इसका कारण यह था कि उनकी रोगप्रतिकारक शक्ति प्राकृतिक रूप से जन्म लेनेवाले बच्चों की अपेक्षा कम होती है, जिससे उनमें दमे का रोग होने की सम्भावना ८०% बढ़ जाती है | प्राक्रतिक प्रसूति में गर्भाशय के संकोचन से शिशु के फेफड़ों और छाती में संचित प्रवाही द्रव्य मुँह के द्वारा बाहर निकल जाता है, जो सिजेरियन में नहीं हो सकता | इससे शिशु के फेफड़ों को भारी हानि होती है, जो आगे चलकर दमे जैसे रोगों का कारण बनती है | ऑपरेशन से पैदा हुये बच्चों में मधुमेह (diabetes) होने की सम्भावना २०% अधिक रहती है | सिजेरियन के बाद अगले गर्भधारण में गर्भस्थ शिशु के मस्तिष्क एवं मेरुरज्जु (spinal cord) में विकृति तथा वजन कम होने का भय रहता है |

गर्भाधान के लिए उत्तम समय कौन-सा ?

गर्भाधान के लिए उत्तम समय कौन-सा ?

गर्भाधान के लिए उत्तम समय कौन-सा

ऋतुकाल की उत्तरोत्तर रात्रियों में गर्भाधान श्रेष्ठ है लेकिन 11वीं व 13 वीं रात्रि वर्जित है।

यदि पुत्र की इच्छा करनी हो तो पत्नी को ऋतुकाल की 4,6,8,10 व 12वीं रात्रि में से किसी एक रात्रि का शुभ मुहूर्त पसंद कर समागम करना चाहिए।

यदि पुत्री की इच्छा हो तो ऋतुकाल की 5,7 या 9वीं रात्रि में से किसी एक रात्रि का शुभ मुहूर्त पसंद करना चाहिए।

कृष्णपक्ष के दिनों में गर्भ रहे तो पुत्र व शुक्लपक्ष में गर्भ रहे तो पुत्री पैदा होने की सम्भावना होती है।

रात्रि के शुभ समय में से भी प्रथम 15 व अंतिम 15 मिनट का त्याग करके बीच का समय गर्भाधान के लिए निश्चित करें।

गर्भाधान हेतु सप्ताह के 7 दिनों की रात्रियों के शुभ समय इस प्रकार हैं-क

रविवार – 8 से 9 और 9.30 से 3.00

सोमवार – 10.30 से 12.00 और 1.30 से 3.00

मंगलवार – 7.30 से 9 और 10,30 से 1.30

बुधवार – 7.30 से 10.00 और 3.00 से 4.00

गुरुवार 12.00 से 1.30

शुक्रवार – 9.00 से 10.30 और 12.00 से 3.00

शनिवार – 9.00 से 12.00

पावन उदगारलेडी मार्टिन के सुहाग की रक्षा करने अफगानिस्तान में प्रकटे शिवजी

(

साधू संग संसार में, दुर्लभ मनुष्य शरीर |

सत्संग सवित तत्व है, त्रिविध ताप की पीर ||

 

मानव-देह मिलना दुर्लभ है और मिल भी जाय तो आधिदैविक, आधिभौतिक और आध्यात्मिक ये तीन ताप मनुष्य को तपाते रहते है | किंतु मनुष्य-देह में भी पवित्रता हो, सच्चाई हो, शुद्धता हो और साधु-संग मिल जाय तो ये त्रिविध ताप मिट जाते हैं |

 

सन १८७९ की बात है | भारत में ब्रिटिश शासन था, उन्हीं दिनों अंग्रेजों ने अफगानिस्तान पर आक्रमण कर दिया | इस युद्ध का संचालन आगर मालवा ब्रिटिश छावनी के लेफ़्टिनेंट कर्नल मार्टिन को सौंपा गया था | कर्नल मार्टिन समय-समय पर युद्ध-क्षेत्र से अपनी पत्नी को कुशलता के समाचार भेजता रहता था | युद्ध लंबा चला और अब तो संदेश आने भी बंद हो गये | लेडी मार्टिन को चिंता सताने लगी कि ‘कहीं कुछ अनर्थ न हो गया हो, अफगानी सैनिकों ने मेरे पति को मार न डाला हो | कदाचित पति युद्ध में शहीद हो गये तो मैं जीकर क्या करूँगी ?’-यह सोचकर वह अनेक शंका-कुशंकाओं से घिरी रहती थी | चिन्तातुर बनी वह एक दिन घोड़े पर बैठकर घूमने जा रही थी | मार्ग में किसी मंदिर से आती हुई शंख व मंत्र ध्वनि ने उसे आकर्षित किया | वह एक पेड़ से अपना घोड़ा बाँधकर मंदिर में गयी | बैजनाथ महादेव के इस मंदिर में शिवपूजन में निमग्न पंडितों से उसने पूछा :”आप लोग क्या कर रहे हैं ?” एक व्रद्ध ब्राह्मण ने कहा : ” हम भगवान शिव का पूजन कर रहे हैं |” लेडी मार्टिन : ‘शिवपूजन की क्या महत्ता है ?’ ब्राह्मण :’बेटी ! भगवान शिव तो औढरदानी हैं, भोलेनाथ हैं | अपने भक्तों के संकट-निवारण करने में वे तनिक भी देर नहीं करते हैं | भक्त उनके दरबार में जो भी मनोकामना लेकर के आता है, उसे वे शीघ्र पूरी करते हैं, किंतु बेटी ! तुम बहुत चिन्तित और उदास नजर आ रही हो ! क्या बात है ?” लेडी मार्टिन :” मेरे पतिदेव युद्ध में गये हैं और विगत कई दिनों से उनका कोई समाचार नहीं आया है | वे युद्ध में फँस गये हैं या मारे गये है, कुछ पता नहीं चल रहा | मैं उनकी ओर से बहुत चिन्तित हूँ |” इतना कहते हुए लेडी मार्टिन की आँखे नम हो गयीं | ब्राह्मण : “तुम चिन्ता मत करो, बेटी ! शिवजी का पूजन करो, उनसे प्रार्थना करो, लघुरूद्री करवाओ | भगवान शिव तुम्हारे पति का रक्षण अवश्य करेंगे | ”

 

पंडितों की सलाह पर उसने वहाँ ग्यारह दिन का ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र से लघुरूद्री अनुष्ठान प्रारंभ किया तथा प्रतिदिन भगवान शिव से अपने पति की रक्षा के लिए प्रार्थना करने लगी कि “हे भगवान शिव ! हे बैजनाथ महादेव ! यदि मेरे पति युद्ध से सकुशल लौट आये तो मैं आपका शिखरबंद मंदिर बनवाऊँगी |” लघुरूद्री की पूर्णाहुति के दिन भागता हुआ एक संदेशवाहक शिवमंदिर में आया और लेडी मार्टिन को एक लिफाफा दिया | उसने घबराते-घबराते वह लिफाफा खोला और पढ़ने लगी |

 

पत्र में उसके पति ने लिखा था :”हम युद्ध में रत थे और तुम तक संदेश भी भेजते रहे लेकिन आक पठानी सेना ने घेर लिया | ब्रिटिश सेना कट मरती और मैं भी मर जाता | ऐसी विकट परिस्थिति में हम घिर गये थे कि प्राण बचाकर भागना भी अत्याधिक कठिन था | इतने में मैंने देखा कि युद्धभूमि में भारत के कोई एक योगी, जिनकी बड़ी लम्बी जटाएँ हैं, हाथ में तीन नोंकवाला एक हथियार (त्रिशूल) इतनी तीव्र गति से घुम रहा था कि पठान सैनिक उन्हें देखकर भागने लगे | उनकी कृपा से घेरे से हमें निकलकर पठानों पर वार करने का मौका मिल गया और हमारी हार की घड़ियाँ अचानक जीत में बदल गयीं | यह सब भारत के उन बाघाम्बरधारी एवं तीन नोंकवाला हथियार धारण किये हुए (त्रिशूलधारी) योगी के कारण ही सम्भव हुआ | उनके महातेजस्वी व्यक्तित्व के प्रभाव से देखते-ही-देखते अफगानिस्तान की पठानी सेना भाग खड़ी हुई और वे परम योगी मुझे हिम्मत देते हुए कहने लगे | घबराओं नहीं | मैं भगवान शिव हूँ तथा तुम्हारी पत्नी की पूजा से प्रसन्न होकर तुम्हारी रक्षा करने आया हूँ, उसके सुहाग की रक्षा करने आया हूँ |”

 

पत्र पढ़ते हुए लेडी मार्टिन की आँखों से अविरत अश्रुधारा बहती जा रही थी, उसका हृदय अहोभाव से भर गया और वह भगवान शिव की प्रतिमा के सम्मुख सिर रखकर प्रार्थना करते-करते रो पड़ी | कुछ सप्ताह बाद उसका पति कर्नल मार्टिन आगर छावनी लौटा | पत्नी ने उसे सारी बातें सुनाते हुए कहा : “आपके संदेश के अभाव में मैं चिन्तित हो उठी थी लेकिन ब्राह्मणों की सलाह से शिवपूजा में लग गयी और आपकी रक्षा के लिए भगवान शिव से प्रार्थना करने लगी | उन दुःखभंजक महादेव ने मेरी प्रार्थना सुनी और आपको सकुशल लौटा दिया |” अब तो पति-पत्नी दोनों ही नियमित रूप से बैजनाथ महादेव के मंदिर में पूजा-अर्चना करने लगे | अपनी पत्नी की इच्छा पर कर्नल मार्टिन मे सन १८८३ में पंद्रह हजार रूपये देकर बैजनाथ महादेव मंदिर का जीर्णोंद्वार करवाया, जिसका शिलालेख आज भी आगर मालवा के इस मंदिर में लगा है | पूरे भारतभर में अंग्रेजों द्वार निर्मित यह एकमात्र हिन्दू मंदिर है |

 

यूरोप जाने से पूर्व लेडी मार्टिन ने पड़ितों से कहा : “हम अपने घर में भी भगवान शिव का मंदिर बनायेंगे तथा इन दुःख-निवारक देव की आजीवन पूजा करते रहेंगे |”

 

भगवान शिव में… भगवान कृष्ण में… माँ अम्बा में… आत्मवेत्ता सदगुरू में.. सत्ता तो एक ही है | आवश्यकता है अटल विश्वास की | एकलव्य ने गुरूमूर्ति में विश्वास कर वह प्राप्त कर लिया जो अर्जुन को कठिन लगा | आरूणि, उपमन्यु, ध्रुव, प्रहलाद आदि अन्य सैकड़ों उदारहण हमारे सामने प्रत्यक्ष हैं | आज भी इस प्रकार का सहयोग हजारों भक्तों को, साधकों को भगवान व आत्मवेत्ता सदगुरूओं के द्वारा निरन्तर प्राप्त होता रहता है | आवश्यकता है तो बस, केवल विश्वास की |

Tuesday, 6 October 2015निष्काम कर्म की आवश्यकतासमाज को आपके प्रेम की, सान्त्वना की, स्नेह की और निष्काम कर्म की आवश्यकता है। आपके पास करने की शक्ति है तो उसे समाज की आवश्यकतापूर्ति में लगा दो। आपकी आवश्यकता माँ, बाप, गुरू और भगवान पूरी कर देंगे। अन्न, जल और वस्त्र आसानी से मिल जायेंगे। पर टेरीकोटन कपड़ा चाहिए, पफ-पॉवडर चाहिए तो यह रूचि है। रूचि के अनुसार जो चीजें मिलती हैं, वे हमारी हानि करती हैं। आवश्यकतानुसार चीजें हमारी तन्दुरूस्ती की भी रक्षा करती है। जो आदमी ज्यादा बीमार है, उसकी बुद्धि सुमति नहीं है।पूज्य बापूजी : आश्रम सत्साहित्य – ‘अनन्य योग’ 

स्त्रियोँ को नारियल क्योँ नहीं फोड़ना चाहिए

स्त्रियोँ को नारियल क्योँ नहीं फोड़ना चाहिए?
हम सभी जानते हैं पूजन कर्म में नारियल का महत्वपूर्ण स्थान है। किसी भी देवी-देवता की पूजा नारियल के बिना अधूरी ही मानी जाती है। नारियल खाने से शारीरिक दुर्बलता एवं भगवान को नारियल चढ़ाने से धन संबंधी समस्याएं दूर हो जाती हैं। स्त्रियाँ क्योँ नहीं फोड़तीं नारियल !! यह भी एक तथ्य है कि महिलाऐँ नारियल नहीं फोड़तीं। नारियल बीज रूप है,इसलिए इसे उत्पादन (प्रजनन) क्षमता से जोड़ा गया है। स्त्रियों बीज रूप से ही शिशु को जन्म देती है और इसलिए नारी के लिए बीज रूपी नारियल को फोड़ना अशुभ माना गया है। देवी-देवताओं को श्रीफल चढ़ाने के बाद पुरुष ही इसे फोड़ते हैं। नारियल से निकले जल से भगवान की प्रतिमाओं का अभिषेक भी किया जाता है। नारियल को श्रीफल भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है,जब भगवान विष्णु ने पृथ्वी पर अवतार लिया तो वे अपने साथ तीन चीजें- लक्ष्मी, नारियल का वृक्ष तथा कामधेनु लाए। इसलिए नारियल के वृक्ष को कल्पवृक्ष भी कहते है। नारियल में ब्रह्मा,विष्णु और महेश तीनों ही देवताओं का वास माना गया है। श्रीफल भगवान शिव का परम प्रिय फल है। नारियल में बनी तीन आंखों को त्रिनेत्र के रूप में देखा जाता है। सम्मान का सूचक है नारियल !! श्रीफल शुभ, समृद्धि, सम्मान, उन्नति और सौभाग्य का सूचक है। सम्मान करने के लिए कपडोँ के साथ श्रीफल भी दिया जाता है। सामाजिक रीति-रिवाजों में भी नारियल भेंट करने की परंपरा है। जैसे बिदाई के समय तिलक कर नारियल और धनराशि भेंट की जाती है। रक्षाबंधन पर बहनें भाइयों को राखी बांध कर नारियल भेंट करती हैं और रक्षा का वचन लेती हैं। 

 

मासानुसार गर्भिणी परिचर्याहर महीने में गर्भ – शरीर के अवयव व धातुएँ आकर लेती है, अंत: विकासक्रम के अनुसार मासानुमासिक कुछ विशेष आहार लेना चाहिए |पहला महिना :- गर्भधारण का संदेह होते ही गर्भिणी सदा मिश्रीवाला सहज में ठंडा हुआ दूध उचित मात्र में पाचनशक्ति के अनुसार तीन घंटे के अंतराल से ले अथवा सुबह – शाम ले | इसके साथ सुबह १ चम्मच मक्खन में रूचि अनुसार मिश्री व काली मिर्च का चूर्ण मिलाकर ले एवं हरे नारियल की चार चम्मच गिरी के साथ २ चम्मच सौंफ खूब देर तक चबाकर खाए | इससे बालक का शरीर पुष्ट, सुडौल व गौरवर्ण का होगा |दूसरा महिना :- इसमे शतावरी, जीवन्ती, अश्वगंधा, मुलहठी, बला आदि मधुर औषधियों में से एक या अधिक का १ ग्राम चूर्ण २०० मिली दूध में २०० मिली पानी मिलाकर मध्यम आँच पर उबालते हुए पानी का भाग जल जाने पर सेवन करे | सवा महिना होने पर आश्रम द्वारा दी औषध से ३ मास तक पुंसवन कर्म करे |तीसरा महिना :-इस महीने में दूध को ठंडा कर १ चम्मच शुध्द घी व ३ चम्मच शहद [ अर्थात घी व शहद विषम मात्रा में ] मिलकर सुबह – शाम ले | अनार का रस पीने तथा ”ॐ नमो नारायण” का जप करने से उलटी दूर होती है |चौथा महिना :- इसमें प्रतिदिन २० से ४० ग्राम मक्खन को धोकर छाछ का अंश निकालकर मिश्री के साथ या गुनगुने दूध में डालकर अपनी पाचनशक्ति के अनुसार सेवन करे | इस मास में बालक का हृदय सक्रिय होने से वह सुनने – समजने लगता है | बालक की इच्छानुसार माता के मन में आहार – विहार संबंधी विविध इच्छाएँ उत्पन्न होने से उनकी पूर्ति युक्ति से [ अर्थात अहितकर न हो ] करनी चाहिए |पांचवां महिना :- इस महीने से गर्भ में मस्तिष्क का विकास शुरू हो जाने से दूध में १५ से २० ग्राम घी ले या दिन में दाल – रोटी, चावल में ७ – ८ चम्मच घी ले | रात को १ से ७ बादाम [ अपने पाचनानुसार ] भिगो दे, सुबह छिलका निकाल के घोंटकर खाए व ऊपर से दूध पिये |इस महीने के प्रारंभ से ही माँ को बालक के इच्छित धर्मबल, नीतिबल, मनोबल व सुसंस्कारों का अनन्य श्रध्दापूर्वक सतत मनन – चिंतन करना चाहिए | सत्संग व शास्त्र का भी मनन – चिंतन करना चाहिए |छठा व सातवाँ महिना :- इन महीनो में दूसरे महीने की मधुर औषधियों में गोक्षुर चूर्ण का समावेश करे व दूध – घी से ले | आश्रम – निर्मित तुलसी – मूल की माला कमर में धारण करे | इस महीने से सूर्यदेव को जल चढ़ाकर उनकी किरणे पेट पर पड़े ऐसे स्वस्थता से बैठकर उँगलियों पर नारियल तेल लगाकर बाहर से नाभि की ओर हल्के हाथो से मसाज करते हुए गर्भस्थ शिशु को संबोधित करते हुए कहे,” जैसे सूर्यनारायण ऊर्जा, उष्णता, वर्षा देकर जगत का कल्याण करते है, वैसे तू भी ओजस्वी, तेजस्वी व परोपकारी बनना | माँ के स्पर्श से बच्चा आनंदित होता है | बाद में २ मिनट तक निम्न मंत्रो का उच्चारण करते हुए मसाज चालू रखे |ॐ भूर्भुव: स्व: | तत्सवितुर्वरेन्यं भर्गो देवस्य धीमहि | धियो यो न: प्रचोदयात ||                                                                                           रामो राजमणि: सदा विजयते राम रमेश भजे, रामेनाभिदता निशाचरचमू रामाय तस्मै नम: |रामान्नास्ति परायण परतरं रामस्य दसो स्म्यहं, रमे चित्तलय: सदा भवतु में भो राम मामुध्दर ||                                                                          रामरक्षास्तोत्र के उपर्युक्त श्लोक में ‘ र ‘ का पुनरावर्तन होने से बच्चा तोतला नहीं रहता | पिता भी अपने प्रेम भरे स्पर्श के साथ गर्भस्थ शिशु को प्रशिक्षित करे |        सातवें मास में स्तन, छाती व पेट पर त्वचा के खिंचने से खुजली शुरू होने पर ऊँगली से न खुजलाकर देशी गाय के घी की मालिश करनी चाहिए |आठवां व नौवा महिना :- इन महीनो में चावल को ६ गुना दूध व ६ गुना पानी में पकाकर घी डालकर सुबह – शाम खाए अथवा शाम के भोजन में दूध – दलिया में घी डालकर खाए | शाम का भोजन तरल रूप में लेना जरुरी है |                                 गर्भ का आकार बढने पर पेट का आकार व भार बढ़ जाने से कब्ज व गैस की शिकायत हो सकती है | निवारणार्थ निम्न प्रयोग अपनी प्रकृति के अनुसार करे |                                 आठवें महीने के १५ दिन बीत जाने पर २ चम्मच एरण्ड तेल दूध से सुबह १ बार ले, फिर नौवे महीने की शुरुआत में पुन: एक बार ऐसा करे अथवा त्रिफला चूर्ण, इसबगोल इनमे से जो भी चूर्ण प्रकृति के अनुकूल हो उसका सेवन वैद्यकीय सलाह के अनुसार करे | पुराने मल की शुद्धि के लिए अनुभवी वैद्य द्वारा निरुह बस्ति व अनुवासन बस्ति ले चंदनबला लाक्षादी तेल से पीठ , कटी से जंघाओं तक मालिश करे और इसी तेल में कपडे का फाहा भिगोकर रोजाना रात को सोते समय योनि के अन्दर गहराई में रख लिया करे | इससे योनिमार्ग मृदु बनता है और प्रसूति सुलभ हो जाती है |पंचामृत : १ चम्मच ताज़ा दही, ७ चम्मच दूध, २ चम्मच शहद, १ चम्मच घी व १ चम्मच मिश्री को मिला लो | इसमें १ चुटकी केसर भी मिलाना हितावह है | ९ महीने नियमित रूप से यह पंचामृत ले |गुण : यह शारीरिक शक्ति, स्फूर्ति, स्मरणशक्ति व कांति को बढाता है तथा हृदय, मस्तिष्क आदि अवयवों को पोषण देता है | यह तीनो दोषों को संतुलित करता है व गर्भिणी अवस्था में होनेवाली उलटी को कम करता है |              उपवास में सिंघाड़े व राजगरे की खीर का सेवन करे | इस प्रकार प्रत्येक गर्भवती स्त्री को नियमित रूप से उचित आहार – विहार का सेवन करते हुए नवमास चिकित्सा विधिवत लेनी चाहिए ताकि प्रसव के बाद भी उसका शरीर सशक्त, सुडौल व स्वस्थ बना रहे, साथ ही वह स्वस्थ, सुडौल, सुन्दर और हृष्ट – पुष्ट शिशु को जन्म दे सके | यह चिकित्सा लेने पर सिजेरियन डिलीवरी की नौबत नहीं आयेगी | प्रसूति के समय नर्स, डॉक्टर ओपरेशन की बात करे तो मना कर दे | गाय के गोबर का १० से ११ मिली रस [ भगवन्नाम जपकर ] लेने से सिजेरियन डिलीवरी की नौबतनहीं आती | संत श्री आशारामजी बापू के उपदेश का लाभ लेनेवाले कई परिवारों के जीवन में यह लाभ देखा गया है |

आत्मरति, आत्मतृप्ति और आत्मप्रीति जिसको मिल गई, उसके लिए बाह्य जगत का कोई कर्त्तव्य रहता नहीं। उसका आत्मविश्रांति में रहना ही सब जीवों का, राष्ट्र का और विश्व का कल्याण करना है। जो पुरूष विगतस्पृहा है, विगतदुःख है, विगतज्वर है, उसके अस्तित्व मात्र से वातावरण में बहुत-बहुत मधुरता आती है। प्रकृति उनके अनुकूल होती है। तरतीव्र प्रारब्धवेग से उनके जीवन में प्रतिकूलता आती है तो वे उद्विग्न नहीं होते। ऐसे स्थितप्रज्ञ महापुरूष के निकट रहने वाले साधक को चाहिए कि वह दिन का चार भाग कर दे। एक भाग वेदान्त शास्त्र का विचार करे। एक भाग परमात्मा के ध्यान में लगावे। परमात्मा का ध्यान कैसे ? ‘मन को, इन्द्रियों को, चित्त को जो चेतना दे रहा है वह चैतन्य आत्मा मैं हूँ। मैं वास्तव में जन्मने-मरने वाला जड़ शरीर नहीं हूँ। क्षण क्षण में सुखी-दुखी होने वाला मैं नही हूँ। बार-बार बदलने वाली बुद्धि वृति मैं नही हूँ। देह में अहं करके जीने वाला जीव मैं नहीं हूँ।अंहकार भी मैं नहीं हूँ। मैं इन सबसे परे, शुद्ध-बुद्ध सनातन सत्य चैतन्य आत्मा हूँ। आनन्द स्वरूप हूँ, शांत स्वरूप हूँ। मैं बोध स्वरूप हूँ…. ज्ञान स्वरूप हूँ।’ जो ऐसा चिन्तन करता है वह वास्तव में अपने ईश्वरत्व का चिंतन करता है, अपने ब्रह्मत्व का चिंतन करता है। इसी चिन्तन में निमग्न रहकर अपने चित्त को ब्रह्ममय बना दे।